बिहार में बहार है…फिर से नीतीशे कुमार हैं…बस पार्टनर बदल गया. जिस बीजेपी से कभी हाथ छुड़ाया था, आज उसके कंधे पर ही सवार होकर नीतीश छठी बार मुख्यमंत्री बन गए । सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि बड़े बड़े राजनीतिक धुरंधरों को पता ही नहीं चला कि राजनीति ने कैसे करवट बदली है. जब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, तब ये साफ नहीं था कि इतनी जल्दी बीजेपी से गठबंधन हो जाएगा. लेकिन पहले से दिल मिल चुका हो तो एक साथ आने में देर कितनी लगती है.
कहते हैं कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. मोदी से शुरु होकर मोदी पर पहुंची नीतीश की राजनीति इसकी तस्दीक करती है. अगर बात करें लालू यादव तो भले ही लालू यादव को किंग मेकर कहा जाता हो….लेकिन इस किंग मेकर को भी पता नहीं था की नीतीश कुमार राजनीति के इतने बड़े खिलाड़ी निकलेंगे । ऐसे तो राजनीति के मौसम वैज्ञानिक रामविलास पासवान को कहा जाता है , लेकिन अगर देखा जाए तो राजनीति के असल मौसम वैज्ञानिक नीतीश कुमार ही हैं….
क्योंकी चार साल पहले जैसे ही नीतीश कुमार को लगा कि अब बीजेपी नरेंद्र मोदी की छाया में अपना कमल खिलाएगी, वैसे ही नीतीश ने बीजेपी से अपना 17 साल पुराना नाता तोड़ लिया. बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नीतीश रेल और कृषि मंत्री रहे. फिर बीजेपी के समर्थन से ही 8 साल तक मुख्यमंत्री रहे. लेकिन 2002 के गुजरात दंगों के साए में नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी से किनारा करना शुरु कर दिया. वो दूरियां पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान तल्खी के साथ सामने आई, जब मोदी और नीतीश एक दूसरे का डीएनए टेस्ट कर रहे थे..
लेकिन कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बिहार में घुसने तक नहीं दिया था नीतीश कुमार ने. आज जिस बीजेपी पर पूरी छाप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है, उसी के साथ नीतीश की सरकारी गाड़ी दौड़ रही है.इसी साल की शुरुआत में गुरु गोविंद सिंह के 350वें प्रकाश पर्व पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना पहुंचे तो नीतीश कुमार से उनकी गुफ्तगू से कयास निकाले जाने लगे थे. उससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का फैसला तो विरोधी दलों में नीतीश कुमार ने सबसे पहले इसका समर्थन किया. तमाम मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी से नीतीश का मिलना जुलना राजनीतिक शिष्टाचार का हिस्सा लगता था, अब उसमें दूर की राजनीति देखी जा रही है.
राजनीति इसलिए भी संभावनाओं का खेल है कि जिस लालू के साथ नीतीश ने गठबंधन किया, उस लालू की नजरों में नीतीश की छवि बेहद घाघ नेता की थी. वो कहा करते थे कि नीतीश के तो पेट में दांत है. फिर उसी लालू से गठबंधन नहीं, महागठबंधन बना और बीस महीने तक सत्ता का मधुमास रहा.अब फिर से नीतीश लालू को छोड़ बीजेपी या कहें कि अब तो मोदी के साथ चले गए. अब लालू भी सोचते होंगे कि राजनीति का सबसे बड़ा मौसम वैज्ञानिक कौन है….या कह सकते हैं की राजनीति में नीतीश कुमार लालू के भी गुरु हैं
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