पूजा की थाली में मेवों के साथ रहने वाला मखाना, किसी को तोहफे में दिया जाने वाला मखाना या फिर पोषण से भरपूर मखाना! तालाब, झील और दलदली पानी के अंदर उपजता है. इसके अलावा कोशी और मिथिला क्षेत्र में आने वाले बाढ़ के पानी में भी बड़े पैमाने पर उपजता है. जोकि अमूमन हर घर के किचेन में रखे डब्बों में देखने को मिल जायेगा. इन डब्बों में रखे मखाने का 80 प्रतिशत उत्पादन बिहार के मिथिलांचल में होता है.”कुरूपा अखरोट” नाम की एक घास के बीज को उबालकर और फिर उसे भून कर मखाना तैयार क़िया जाता है.डॉक्टर से लेकर बड़े बुजुर्ग सभी मखाने के सेवन की सलाह देते हैं. कारण है इसमें पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व! इसे उगाने के लिए खाद या कीटनाशक का प्रयोग नहीं क़िया जाता. इसीलिए यह ऑर्गेनिक फूड के नाम से प्रचलित है.

भारत के अलावा मखाने की खेती चीन, रूस , जापान और कोरिया में भी की जाती है. अपने औषधीय गुणों के कारण अमेरिकन हर्बल फूड एसोसिएशन ने मखाने को क्लास वन फूड का दर्जा दिया गया है.
मिथिलांचल के सीतामढ़ी, सहरसा , पूर्णिया, कटिहार जैसे छोटे शहरों में मखाने को बेहद पसंद किया जाता है. मखाने को घी में भूनकर नाश्ते के रूप में काफी पसंद किया जाता है. इसके अलावा मखाने का खीर , नमकीन और इसकी डंठलों की सब्जी भी लोग काफी पसंद करते हैं. 28 फरवरी 2002 को दरभंगा के निकट बासुदेवपुर में राष्ट्रीय मखाना केंद्र की स्थापना की गई थी.

आज के दौर में पैकेट बंद चीजों में भी लोग पौष्टिकता खोजते हैं. और मखाने को इस वजह से पैकेट बंद खाए जाने वाले चीज़ों में सबसे अधिक लोकप्रियता हासिल है. इसे भूनकर और इसमें मसाले मिलाने से इसका स्वाद दुगना हो जाता है. और इसके बेहतरीन स्वाद और पोषण के कारण लोग इसे पैकेट बंद नाश्ते के रूप में काफी पसंद करते हैं. और सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि मखाने को पूरे देश में भी उतना ही पसंद किया जाता है. देश के सभी बड़े रेस्तरां में मखाने से बनी डिशेज की काफ़ी मांग है.
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