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Bihar को जानना हो तो कुछ दिन तो गुजारो गांव में village life of Bihar I Biharplus News

village life in bihar

कहते हैं कि भारत संस्कृति और सभ्यता को निभाने वाला देश है…इसकी असली पहचान और इस देश के कई गूढ़ रहस्य आज भी वैसी जगहों पर मौजूद हैं जिन्हें हम गांव कहते हैं…जी हां…जिस तरह विश्व में भारत अपनी पहचान रखता है उसी तरह देश के अन्य राज्यों के मुकाबले बिहार की अपनी एक अलग पहचान है…ये कहना भी गलत नहीं होगा कि देश की असली संस्कृति आज भी कहीं न कहीं गांवों में हीं जिंदा है…गांव के लोगों का जीवन भले ही आज से कई साल पुराना लगे लेकिन सच तो ये है कि जिंदगी से विकास की रेस लगाते लगाते हम इतने आगे दौड़ चले हैं कि हमारी संस्कृति हमारा धरोहर पीछे छूटता चला जा रहा है…इस बात का अफसोस तो होता है लेकिन दूसरी ओर इस बात से खुशी भी होती है कि बिहार के गांवों में वो सभ्यता और वो संस्कृति आज भी देखने को मिल जाती है जिससे हमारे देश की पहचान हुआ करती थी.,..पाश्चात्य संस्कृति की नकल करते करते हम ऐसे खो गये कि हमारी भावनाओं में दरख्त पड़ने लगी और संस्कृति और सभ्यता की जो पूंजी थी उसमें भी सेंधमारी होने लगी…आज हम आपको बतायेंगे कि बिहार के गांवों में लोगों का जीवन कैसा होता है…ग्राम या गाँव छोटी-छोटी मानव बस्तियों को कहते हैं जिनकी जनसंख्या कुछ सौ से लेकर कुछ हजार के बीच होती है। प्राय: गाँवों के लोग कृषि या कोई अन्य परम्परागत काम करते हैं। गाँवों में घर प्राय: बहुत पास-पास व अव्यवस्थित होते हैं। परम्परागत रूप से गाँवों में शहरों की अपेक्षा कम सुविधाएं होती हैं।

सभ्यता की पुड़िया बना के फांक चुके आज के युवाओं को बिहार के गांवों का दौरा करना चाहिए और वहां कुछ रोज गुजारना चाहिए…परंपरा को कैसे जीवंत रखा जाता है इसकी बानगी गांव में ही देखने को मिल सकती है…आज भी महिलाओं के सर से घूंघट का नहीं गिरना…बड़े-बुजुर्गों के समामन में उठ खड़े होना..और तो और एक साथ लोगों का हर झुंड ये कहने के लिए काफी होता है कि देश की एकता अखंडता चाहे ते राजनीति की बलि चढ़ा लो लेकिन गांव में तो जहां मिल गये चार यार वहीं हो जाता है एक नया त्योहार….बिहार के गांवों में लोगों का लिबास दिखावे का नहीं होता उन्हें तो बस तन ढकने से मतलब होता है… बिहार में मनाये जाने वाले त्योहारों जैसे छठ दशहरा आदी में भी एक अलग ही तस्वीर देखने को मिलती है…यही कारण है कि बिहार की संस्कृति और गांवों में रहने वाले लोगों की सोच को अब धीरे धीरे लोग मानने और समझने भी लगे हैं…हालांकि आज के दौर में विकास से अनभिज्ञ कोई भी नहीं है लेकिन गांव से शहर शहर से जिला जिले से राज्य और राज्य से देश सोच से बनता है जिसकी बानगी बिहार के लगभग गांवों में भी दिख जाती है…

एक राज्य के रूप में अस्तित्व में आये हुए बिहार को 106 साल पूरा होने जा रहा है. यह हम सबके लिए गौरव की बात है. लेकिन, देश में बिहार के लोगों की जैसी इज्जत होनी चाहिए, वैसी नहीं है. कुछेक राज्यों में बिहार के लोगों को बिहारी कह कर अपमानित करने की कोशिश की जाती है. दरअसल, लोगों को बिहार की सैकड़ों साल पुरानी गौरवशाली परंपरा का भान नहीं है. यह मौका है बिहार की गौरवशाली परंपरा को याद करने और युवा पीढ़ी को इसका एहसास कराने का. अब बिहार के गांव में लोगों की जीवनशैली से सीखने की जरूरत है…ज्ञात रहे कि ये सभी तथ्य राजनीति जैसी छुआछुत से बचाव करते हुए लिखे जा रहे है…इसलिए ये बताना भी जरूरी हो गया है कि बिहार के इतिहास में जब भी जायेंगे गांवों के ही इतिहास पायेंगे..बल्कि इस देश का इतिहास ही गांवों से रहा है…

कुल मिलाकर बिहार में गांव के लोगों का जीवन सामान्य रहता है…लोगों को दिखावे की दुनिया से तो परहेज होती ही है साथ ही खेत और मिट्टी में काम करना ही अपनी किस्मत समझते हैं…नुक्कड़ पर बैठकर दस लोगों की सभा का3 आनंद तो सिर्फ और सिर्फ बिहार के किसी गांव में ही उठाया जा सकता है…शहरों में तो दस की भीड़ जहां दिखी नहीं कि पुलिस का पहरा शुरू हो जाता है…क्योंकि शहर में न सिर्फ वातावरण बल्कि लोगों के दिमाग और काम करने के तरीके में भी प्रदूषण फैल चुका है….