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Guru Govind Singh’s land Bihar, every Indian should see : Biharplus News

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बिहार की माटी वैसे तो कई विभूतियों की जातक रही है…इस धरती पर एक से बढ़कर एक बीर योद्धा और एक से बढ़कर एक महान शख्सियतों ने जन्म लेकर धरती का मान बढ़ाया है…न जाने कितने स्वतंत्रता सेनानी और ईश्वरीय अवतार की साक्षी रही इस माटी को आज भी ऐसे ही नहीं सलाम करते हैं…अपनी अनेकों संपदा को समेटे कभी न मिटने वाला इतिहास बिहार की इस माटी का रहा है…ऐसे महान विभूतियों का जब भी जिक्र होता है गुरू गोविंद सिंह जी महाराज का नाम उसमें सबसे उपर होता है…सिख समाज के दसवें धर्मगुरू गुरू गोविंद सिंह जन जन की आस्था में तो है ही उनका नाम राष्ट्र वीरों और अद्भुत योद्धाओं में शुमार है…वो गुरू गोविंद सिंह ही थे जिन्होंने देश की आन बान और शान के लिए अपने पुत्रों को भी बलि चढ़ा दिया था…गोविंद सिंह सिखों के दसवें धर्म गुरू थे और उनका जन्म बिहार का राजधानी पटना में हुआ था..उनके पिता तेग बहादुर की मृत्य़ु के पश्चात 11 नवंबर सन 1675 को वो गुरू बने थे…गुरू गोविंद सिंह महान योद्धा कवि और आध्यात्मिक नेता थे…मुगलों के शान में भी उन्होंने कभी घुटने टेकना स्वीकार नहीं किया…मुगलों ने उनसे आत्मसमर्पण करने को कहा था…लेकिन समर्पण करने के बजाय उन्होंने मुगलों को ही चुनौती दे दी..जिसके बाद मुगलों ने निर्ममता की सीमा पार करते हुए उनके पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया था…यही वो समय था जिस वक्त गुरू गोविंद सिंह ने कहा थि कि देश की आन बान और शान के लिए ऐसे कई पुत्र राष्ट्र की बलि वेदी पर कुर्बान हैं…

गुरू गोविंग सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की और लोगों को अन्याय के खिलाफ खड़ा होने के लिए प्रोत्साहित किया…जिसके बाद वो गोविंद सिह राय से गुरू गोविंद सिंह कहलाये…हर साल उनकी जयंती को उनके चाहने वाले धूमधाम से मनाते हैं…अब बिहार की राजधानी पटना की धरती पर जन्म लेने के कारण गुरू गोविंद सिंह जी के नाम पर यहां भी एक गुरूद्वारा बनाया गया जिसे हम पटना साहिब गुरूद्वारा के नाम से जानते हैं…आपको बता दें कि अपनी मृत्यु से पहले गोविंद सिंह ने कहा था कि मेरे बाद पवित्र ग्रंथ को ही गुरू मानकर उनकी पूजा करें…जिसके बाद से गुरूद्वारे में पवित्र ग्रंथ को रखकर उसकी पूजा की जाती है…जिसे हम गुरू ग्रंथ साहिब के नाम से भी जानते हैं…

गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे, उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की थी. उन्हें विद्वानों का संरक्षक माना जाता था. कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी. इस लिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था. कहा जाता है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हुए और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दिया था. गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करता है. कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंत की रक्षा के लिए कई बार मुगलों का सामना किया था. सिखों के लिए 5 चीजें- बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था. इन चीजों को ‘पांच ककार’ कहा जाता है, जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है.

बहरहाल बिहार की माटी से जन्म लेने वाले विभूतियों को जब भी याद किया जाता है उसमें गुरू गोविंद सिंह का नाम सर्वोपरि है…उनके जन्म से न सिर्फ धर्म का प्रचार हुआ बल्कि उनके चाहने वाले देश विदेश के कई कोने में आज भी उनके पदचिन्हों पर चलकर उनके संदेशों को लोगों तक पहुंचाने का काम करते हैं…बिहार के लोगों के लिए ये बात किसी गौरव गाथा से कम नहीं है कि राज्य की माटी से जन्म लेकर उन्होंने इसक देश और धरती का ही नहीं बल्कि बिहार और इसकी माटी को भी पवित्र कर दिया…ये माटी उन्हें आज भी सलाम करती है और सलाम करते हैं वो लोग जो आज भी गुरू गोविंद सिंह जी महाराज के पदचिन्हों पर चलकर अपने जीवन के मार्ग को प्रशस्त करते हैं..